दुर्भाग्य से "हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है" एसा भारत के राज्य-बंधारण में कही भी लिखा नहिं है। कोई ओर भाषा को भी राष्ट्रभाषा का दरज्जा नहिं दिया गया। बंधारणसभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और दुसरे कई सदस्यो ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रस्ताव ९ सितंबर १९४९ के दिन रखा और उसे मंजूर भी किया किन्तुं English के हिमायती जवाहर लाल नेहरु को ये प्रस्ताव पसंद नहि आया और नामंजूर कर दिया। डॉ. राजेन्द्र प्रसादजी ने हिन्दी का महत्व समजाने के लिये जो पत्र (कठोर शब्दो में) लिखा उसका भी कोई असर नहिं हुआ। हिन्दी को वो सत्तावार/official भाषा का भी दरज्जा देने के लिये तैयार नहिं थे। नेहरु के अनुगामी प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्रीजी ने २६ जनवरी १९६५ के गणतंत्र के अवसर पर हिन्दी को सत्तावार/official भाषा जाहिर किया। लेकिन दुर्भाग्य से हिन्दी कभी भी हमारे देश की राष्ट्रभाषा नही बन पाई।
कानून ऐसा है की भारत के सभी राज्य हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रुप मे समर्थन न दे तब तक उसे बंधारणीय तरीके से राष्ट्रभाषा बनाया नहि जा सकता। बंधारण की ३४३ कि कलम के मुताबीक हिन्दी आज भी भारत की राष्ट्रभाषा के बदले मात्र official language है, जिसकी लिपी देवनागरी होनी चाहिए। हिन्दी को सत्तावार/official भाषा के रुप में भी २८ में से सिर्फ़ १० राज्यो ने और ७ मे से सिर्फ़ ३ केन्द्रशासित प्रदेशो ने ही स्वीकृत किया है।
विदेश मंत्री के रुप में अटल बिहारी बाजपेयीजी ने १९७७ में UNO की जनरल असेम्ब्ली की बैठक में हिन्दी में प्रवचन दे के जब भारत का गौरव बढाया तब विदेश सचिव जगत महेता ने पत्रकारो को बताया कि "पहली बार मुजे पता चला की हिन्दी भाषा कितनी प्रभावशाली है।" बाकी तो भाषावाद के नाम पे हमारे यहा कई बार दंगे होते रहे है।
आज भी हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा क्यों नहिं बन पाई ?
महेन्द्र पटेल, Friday, March 12, 2010
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