आज आपके सामने जिस निवेदन को लेकर उपस्थित हुआ हूं उसके चरितार्थ होने पर सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति लाभान्वित होगी।
संस्कृत देवभाषा है ये तो हम सब भी मानते हैं और साथ ही साथ आज सम्पूर्ण विश्व भी ये बात स्वीकार करने को बाध्य है ।
संस्कृत न केवल सर्वप्राचीन भा षा है अपितु सबसे वैज्ञानिक भाषा है और सभी भाषाओं की मां अर्थात जननी है । संस्कृत भाषा ही भारतीय संस्कृति की पोषक और रक्षक है अत: इसकी रक्षा हमारा परम कर्तब्य है ।
अत: निवेदन ये है कि आगामी जनगणना में आप सभी बन्धु संस्कृत भाषा को अपनी भाषा के रूप में नामित करें ।
जो जन संस्कृत विज्ञ हैं और संस्कृत बोलना, लिखना तथा पढना जानते हैं वो आगामी जनगणना में अपनी मातृभाषा संस्कृत ही लिखें । तथा जो संस्कृत नहीं जानते या स्वयं को अ ल्पज्ञ समझते हैं उनसे मैं ये कहना चाहूंगा कि हम सभी हिंदी भाषी या किसी भी भारतीय भाषा के बोलने वाले अपनी भाषा में 20 प्रतिशत शब्द संस्कृत के ही बोलते हैं फिर चाहे हम मराठी, गुजराती, उर्दू, पंजाबी या कोई भी भारतीय भाषा बोलते हों । इतना ही नहीं हम जिन विदेशी भाषाओं को बोलते हैं उनमें भी संस्कृत से ही शब्द गृहीत हैं। एक उदाहरण दे रहा हूं ।- अंग्रेजी भाषा का शब्द गो जिसका अर्थ जाना होता है ज्यों का त्यों संस्कृत भाषा से ही उठाकर रख दिया गया है । गो की संस्कृत में व्युत्पत्ति गच्छति इति गो है । ऐसे ही और भी बहुत से शब्द हैं जो संस्कृत से ही गृहीत हैं । अत: जो संस्कृत में अपना अधिक सामर्थ्य नहीं मानते वो संस्कृत को अपनी दूसरी भाषा के रूप में उद्धृत करें । इससे हमारी तो कोई हानि न होगी पर हमारी संस्कृति का उद्धार होगा ।
विश्वास मानिये इससे न केवल संस्कृत भाषा का अपितु सभी भारतीय भाषाओं को लाभ होगा , क्यूकि संस्कृत सबकी मां है और अगर मां पुष्ट होगी तो बच्चे तो अपने आप ही पुष्ट होंगे , या यूं कहें कि मां कभी भी अपने से पहले अपने बच्चों की सेहत का ख्याल रखती है और इस तरह यदि संस्कृत भाषा बढेगी तो अन्य सभी भाषाओं का भी उपकार ही होगा ।
इस निवेदन में मेरा कोई ब्यक्तिगत स्वार्थ तो नहीं ही है ये बात तो आप सब समझते ही है फिर भी मैं ये निवेदन सिर्फ इसलिये कर रहा हूं कि जनगणना में आप अपनी प्रथम भाषा और द्वितीय भाषा के तौर पर किसी न किसी भाषा का नाम तो देंगे ही । फिर किसी भी विदेशी यथा अंग्रजी आदि भाषाओं को अपनी पहली या दूसरी भाषा क्यूं बनाई जाए । हम कितने भी दिन विदेशों में बिता लें पर हमारी मां तो वही रहेगी जो बचपन से हमारी मां है, जिसने हमें पैदा किया है । तो फिर हमें अपनी मां को मां कहने में शर्म क्यूं हो जबकि हमारी मां दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मां है ।
आशा है आप सभी बन्धु मेरे इस निवेदन को स्वीकार करेंगे।।
आपका आभार
आनन्द पाण्डेय
यह संदेश मुझे अंकुर गुप्ता ने ईमेल से भेजा था| यह लेख देशभक्त ब्लॉग में ७ मई को प्रकट हुआ था|
अत: निवेदन ये है कि आगामी जनगणना में आप सभी बन्धु संस्कृत भाषा को अपनी भाषा के रूप में नामित करें ।
जो जन संस्कृत विज्ञ हैं और संस्कृत बोलना, लिखना तथा पढना जानते हैं वो आगामी जनगणना में अपनी मातृभाषा संस्कृत ही लिखें । तथा जो संस्कृत नहीं जानते या स्वयं को अ ल्पज्ञ समझते हैं उनसे मैं ये कहना चाहूंगा कि हम सभी हिंदी भाषी या किसी भी भारतीय भाषा के बोलने वाले अपनी भाषा में 20 प्रतिशत शब्द संस्कृत के ही बोलते हैं फिर चाहे हम मराठी, गुजराती, उर्दू, पंजाबी या कोई भी भारतीय भाषा बोलते हों । इतना ही नहीं हम जिन विदेशी भाषाओं को बोलते हैं उनमें भी संस्कृत से ही शब्द गृहीत हैं। एक उदाहरण दे रहा हूं ।- अंग्रेजी भाषा का शब्द गो जिसका अर्थ जाना होता है ज्यों का त्यों संस्कृत भाषा से ही उठाकर रख दिया गया है । गो की संस्कृत में व्युत्पत्ति गच्छति इति गो है । ऐसे ही और भी बहुत से शब्द हैं जो संस्कृत से ही गृहीत हैं । अत: जो संस्कृत में अपना अधिक सामर्थ्य नहीं मानते वो संस्कृत को अपनी दूसरी भाषा के रूप में उद्धृत करें । इससे हमारी तो कोई हानि न होगी पर हमारी संस्कृति का उद्धार होगा ।
विश्वास मानिये इससे न केवल संस्कृत भाषा का अपितु सभी भारतीय भाषाओं को लाभ होगा , क्यूकि संस्कृत सबकी मां है और अगर मां पुष्ट होगी तो बच्चे तो अपने आप ही पुष्ट होंगे , या यूं कहें कि मां कभी भी अपने से पहले अपने बच्चों की सेहत का ख्याल रखती है और इस तरह यदि संस्कृत भाषा बढेगी तो अन्य सभी भाषाओं का भी उपकार ही होगा ।
इस निवेदन में मेरा कोई ब्यक्तिगत स्वार्थ तो नहीं ही है ये बात तो आप सब समझते ही है फिर भी मैं ये निवेदन सिर्फ इसलिये कर रहा हूं कि जनगणना में आप अपनी प्रथम भाषा और द्वितीय भाषा के तौर पर किसी न किसी भाषा का नाम तो देंगे ही । फिर किसी भी विदेशी यथा अंग्रजी आदि भाषाओं को अपनी पहली या दूसरी भाषा क्यूं बनाई जाए । हम कितने भी दिन विदेशों में बिता लें पर हमारी मां तो वही रहेगी जो बचपन से हमारी मां है, जिसने हमें पैदा किया है । तो फिर हमें अपनी मां को मां कहने में शर्म क्यूं हो जबकि हमारी मां दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मां है ।
आशा है आप सभी बन्धु मेरे इस निवेदन को स्वीकार करेंगे।।
आपका आभार
आनन्द पाण्डेय
यह संदेश मुझे अंकुर गुप्ता ने ईमेल से भेजा था| यह लेख देशभक्त ब्लॉग में ७ मई को प्रकट हुआ था|
कृपया इस अपील को दूसरे लोगो तक भी पहुचाए|
बहुत सही पहल है भाई। इसी बात की चर्चा मैं पिछले दिनों अपने मित्रों से कर रहा था। सचमुच यही सही मौका है जब हम विदेशी भाषा की नींव हिला सकते हैं। बधाई।